बौद्धिक संस्कृति में भगवान गौतम बुद्ध द्वारा बताए मार्ग का #आदर होता था,
लोग उस मार्ग पर चलते थे या चलने का प्रयास करते थे,
बौद्धिक मार्ग का अनुसरण होता था।
#गोतम नाम के व्यक्ति को जब संबोधि प्राप्त हुआ
तो
उन्होंने पहले पहल लोगों से यही कहा:-
(अपने शरण में रहो, किसी अन्य के शरण में नहीं जाओ।)
गृहस्तों को तीन रत्नों का शरण बताया:-
#बोधि (ज्ञान) सरणं, नन सरणं।
#धम्म (बेहतर गुण, स्वभाव और लक्षण) सरणं, नन सरणं।
#संघ (गुणवान व्यक्तियों) सरणं, नन सरणं।
यानी
सामान्य गृहस्तों को #तीन_रत्नों के शरण में जाने को बोले।
1) बुद्धं सरणं गच्छामि।
2) धम्मं सरणं गच्छामि।
3) संघं सरणं गच्छामि।
जबकि
प्रार्थना, प्रेय, इबादत का अर्थ निवेदन करना, अनुरोध करना, याचना करना, आग्रह करना, भीख मांगना होता है।
आज बहुसंख्यक लोगों द्वारा या बहुसंख्यक लोगों के घरों में जो भी आयोजन आयोजित होता है,
उसमें याचना, मांगना, प्रार्थना, निवेदन ही सबसे प्रमुख होता है।
वर्तमान समय में किसी के आराध्य ने कोई मार्ग नहीं बताया है ।
सारे के सारे लोग अपने आराध्य से भीख मंगन भक्ति वाला कर्मकांड करने में ही मग्न है।